पटना। सर्वोच्च न्यायालय के गुरुवार के आदेश से करीब 17 साल पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अनुसूचित जातियों का उप वर्गीकरण कर दिया था। राज्य में अनुसूचित सूची में 22 जातियां हैं। नीतीश ने इनमें से 18 जातियों को महादलित घोषित कर दिया। इन्हें विशेष सुविधाएं दी जाने लगीं।
नीतीश कुमार 2005 में राज्य के मुख्यमंत्री बने। 2007 में उनकी सरकार ने महादलित आयोग का गठन किया। आयोग को अनुसूचित जातियों में शैक्षणिक, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर जातियों की पहचान करनी थी। आयोग ने दो सिफारिशें की।
18 अनुसूचित जातियों को महादलित श्रेणी में रखा
पहली सिफारिश में 22 से 18 अनुसूचित जातियों को महादलित श्रेणी में रखने और उनके उत्थान के लिए विशेष कार्ययोजना बनाने की सलाह दी गई थी। बाद की सिफारिशों के आधार पर पहली सिफारिश में छोड़ी गई चार जातियों को भी महादलित में शामिल किया गया।
उनके लिए अलग से महादलित मिशन का गठन किया गया। वह आज भी सक्रिय है। हाल में हुई जाति आधारित गणना के बाद राज्य की सेवाओं में अनुसूचित जातियों का आरक्षण 16 से बढ़ा कर 20 प्रतिशत कर दिया गया। हालांकि, इसपर हाईकोर्ट की रोक लग गई है। इसके विरुद्ध राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है।
धीरे-धीरे बढ़ाई गईं सुविधाएं
प्रारंभ में अनुसूचित जातियों को छोटी-छोटी सुविधाएं दी गईं। तीन डिसमिल जमीन, देश-दुनिया की खबरों के प्रति जागरूक रहने के उद्देश्य से ट्रांजिस्टर आदि की सुविधाएं दी गईं। बाद के दिनों में इनकी सुविधाएं बढ़ा दी गईं। इन्हें शिक्षा, उद्योग और कारोबार के अलावा नौकरियों में भी प्राथमिकता दी जाने लगी।
राज्य में करीब साढ़े नौ हजार विकास मित्र बहाल हैं। ये सभी पंचायतों में हैं। इन्हें 25 हजार रुपये का मासिक मानदेय दिया जाता है। हरेक जिले में अनुसूचित जातियों के लिए छात्रावास है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए इन्हें निशुल्क कोचिंग की भी सुविधा दी गई है।
राज्य सरकार के मंत्री डा. अशोक चौधरी ने कहा कि नीतीश सरकार की अनुसूचित जाति के उत्थान से जुड़ी नीतियां स्पष्ट है। उन्होंने ही समाज कल्याण विभाग से अलग कर अनुसूचित कल्याण मंत्रालय का गठन किया।पहले यह समाज कल्याण के अधीन था। उसका बजट दो सौ करोड़ होता था। अब अनुसूचित जाति विभाग को अलग किया। अब इस विभाग का बजट हजार करोड़ से अधिक है।