नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज करते हुए कहा कि अनुसूचित जाति (SC) सूची में किसी भी समुदाय को शामिल करने या उसमें परिवर्तन करने का अधिकार केवल संसद के पास है।
शुक्रवार को जस्टिस बी. आर. गवई की अगुआई वाली बेंच ने इस मामले में दाखिल याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुए उसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि पूरे देश में आरे-कटिका (खटीक) समुदाय को अनुसूचित जाति (SC) सूची में शामिल किया जाए।
‘कोर्ट के पास SC सूची में बदलाव का अधिकार नहीं’
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने साफ रूप से कहा कि न्यायालयों के पास SC सूची में कोई बदलाव करने का अधिकार नहीं है। जस्टिस गवई ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि ऐसी याचिका कैसे स्वीकार्य हो सकती है?
सुप्रीम कोर्ट पहले ही कई बार इस मुद्दे को स्पष्ट कर चुका है। जब याचिकाकर्ता के वकील ने हाई कोर्ट में याचिका दायर करने की अनुमति मांगी, तो बेंच ने जवाब दिया कि हाई कोर्ट के पास भी ऐसा कोई अधिकार नहीं है। केवल संसद ही यह कर सकती है। यह पूरी तरह से तयशुदा कानून है।
बेंच ने याचिकाकर्ता को स्पष्ट रूप से बताया कि कोर्ट के पास अनुसूचित जाति सूची में किसी भी प्रकार का संशोधन करने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में यह स्पष्ट कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकते…यहां तक कि एक कॉमा भी नहीं बदल सकते।
क्या है मामला?
याचिकाकर्ता का तर्क था कि आरे-कटिका (खटीक) समुदाय, जो हिंदू समुदाय का एक भाग है, सामाजिक रूप से पिछड़ा है। इस समुदाय के लोग मुख्य रूप से भेड़-बकरियों का वध और मांस बिक्री का काम करते हैं और समाज से अलग-थलग रहते हैं।
कुछ राज्यों में यह समुदाय अनुसूचित जाति (SC) में आता है, जबकि अन्य राज्यों में इसे अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में रखा गया है। याचिका में कहा गया था कि यह समुदाय हरियाणा, दिल्ली, उप्र, बिहार, राजस्थान और गुजरात में SC श्रेणी में आता है, लेकिन अन्य राज्यों में इसे OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जातिगत भेदभाव और सामाजिक रीति-रिवाज पूरे भारत में समान हैं, इसलिए पूरे देश में समुदाय को अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
कोर्ट ने पुराने मामले का दिया हवाला
अदालत ने मणिपुर के 2023 के एक मामले का हवाला दिया, जिसमें हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया था। इस फैसले के बाद राज्य में दंगे और हिंसा भड़क उठी थी।
रिव्यू पिटिशन के बाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश को निरस्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना का जिक्र करते हुए स्पष्ट किया कि जातियों की श्रेणी में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद को है न कि न्यायालयों को।