बैंकॉक। पैंटोंगटार्न शिनावात्रा के थाईलैंड की नई प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद उनको दुनियाभर से बधाई मिल रही है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक्स पर उनको मुबारकबाद देते हुए अपने पोस्ट में कहा कि भारत और थाईलैंड के बीच द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने के लिए आपके साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं।
पैंटोंगटार्न शिनावात्रा के पीएम बनने का असर ना सिर्फ दूसरे देशों के साथ थाईलैंड के रिश्ते पर होगा बल्कि देश की राजनीति में भी कुछ बड़े बदलाव दिख सकते हैं। इसकी वजह लंबे समय बाद शिनावात्रा परिवार से देश का पीएम बनना है।
रिपोर्ट के मुताबिक, थाईलैंड में बीते साल हुए चुनाव में पैंटोंगटार्न की सेंटर-दक्षिणपंथी फेउ थाई पार्टी दूसरे स्थान पर आई थी। प्रगतिशील मूव फॉरवर्ड पार्टी (एमएफपी) ने सबसे अधिक सीटें जीती थीं। पैंटोंगटार्न के पिता और पूर्व पीएम थाकसिन शिनावात्रा गठबंधन कर सत्ता में आ गए थे।
अगस्त 2023 में फेउ थाई नेता श्रीथा थाविसिन प्रधानमंत्री बने थे। एक साल से भी कम समय में 14 अगस्त को संवैधानिक अदालत के आदेश के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया। इसके बाद देश की संसद ने पैंटोंगटार्न के तौर पर देश की सबसे युवा पीएम को चुना।
पैंटोंगटार्न शिनावात्रा के पीएम बनने का क्या होगा असर
करीब 7 करोड़ की आबादी वाले थाईलैंड की सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री पैंटोंगटार्न तीन साल पहले ही राजनीति में आई हैं। यूके में होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद वह थाकसिन के रेंडे होटल ग्रुप का मैनेजमेंट देख रही थीं। पैंटोंगटार्न खुद को एक सामाजिक उदारवादी कहती हैं और थाईलैंड के नए समान विवाह कानून की समर्थक हैं। उनके पिता थकसिन, जो अब 75 वर्ष के हैं, राजनीति में आने से पहले पुलिस में थे।
थाकसिन की कल्याणकारी नीतियों ने गरीब और ग्रामीण थाई लोगों के बीच नेता के तौर पर उनको लोकप्रियता दी थी सलेकिन 2006 में टैक्स चोरी के आरोपों के बाद वह सत्ता से बाहर हो गए। हालांकि इसके बाद भी थाकसिन देश की राजनीति में एक मजबूत बने रहे।
पैंटोंगटार्न के पिता थाकसिन को देश में लोकप्रिय नेता के रूप में देखा जाता है लेकिन उन्होंने बीते चुनाव के बाद उन रूढ़िवादी ताकतों के साथ हाथ मिलाया, जिनके खिलाफ वह लड़ते रहे हैं। इससे उनको ये फायदा जरूर हुआ है कि एमएफपी के साथ गठबंधन के जरिए वह करीब डेढ़ दशक बाद 2023 में फिर से थाईलैंड की सत्ता में लौट आए।
थाईलैंड की राजनीति में आगे क्या होगा?
एक्सपर्ट कहते हैं कि थाईलैंड ‘डबल लॉक डेमोक्रेसी’ में फंस गया है, जहां कानूनी प्रणाली और सैन्य तख्तापलट का इस्तेमाल बार-बार चुनाव परिणामों को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि पैंटोंगटार्न शिनावात्रा राजनीति में नई हैं, ऐसे में पर्दे के पीछे से सरकार उनके पिता ही चलाएंगे।
थाईलैंड का राजनीतिक इतिहास अशांत रहा है। देश ने 1932 में संवैधानिक राजतंत्र बनने के बाद से 19 तख्तापलट देखे हैं। ऐसे में अपने और बेटी के राजनीतिक अस्तित्व को सुनिश्चित करना थाकसिन के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।
पैंटोंगटार्न और थाकसिन की एक और चिंता अर्थव्यवस्था होगी। निक्केई एशिया की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 के तख्तापलट के बाद से अर्थव्यवस्था में प्रति वर्ष 1 से 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में यह 5 प्रतिशत है।
अर्थव्यवस्था के मामले में वियतनाम और दूसरे पड़ोसी देश थाईलैंड से आगे निकल रहे हैं। ऐसे में ना सिर्फ राजनीतिक तौर पर पैंटोंगटार्न और थाकसिन को संभलना होगा बल्कि साथ ही साथ आर्थिक गति भी बढ़ानी होगी।