नई दिल्ली देश के नए मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि जब मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा रही है, तब आधी रात को नए CEC के चयन का फैसला लेना प्रधानमंत्री, गृहमंत्री के लिए अपमानजनक और अशिष्ट है।
राहुल गांधी ने एक्स पर एक पत्र साझा करते हुए पोस्ट में लिखा कि अगले मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन करने के लिए हुई समिति की बैठक के दौरान मैंने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को एक असहमति नोट प्रस्तुत किया था।
इसमें कहा गया था कि कार्यपालिका के हस्तक्षेप से मुक्त एक स्वतंत्र चुनाव आयोग का सबसे बुनियादी पहलू चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनने की प्रक्रिया है।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करके और भारत के मुख्य न्यायाधीश को समिति से हटाकर मोदी सरकार ने चुनावी प्रक्रिया की ईमानदारी को लेकर करोड़ों मतदाताओं की चिंताओं को बढ़ा दिया है।
विपक्ष के नेता के रूप में यह मेरा कर्तव्य है कि मैं बाबासाहब आंबेडकर और हमारे राष्ट्र निर्माताओं के आदर्शों को कायम रखूं और सरकार को जवाबदेह ठहराऊं।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री द्वारा नए मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन का आधी रात को निर्णय लेना अपमानजनक और अशिष्टतापूर्ण है। जबकि समिति की संरचना और प्रक्रिया को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा रही है। इस पर 48 घंटे से भी कम समय में सुनवाई होनी है।
ज्ञानेश कुमार बने मुख्य चुनाव आयुक्त
देश के नए मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) के नाम की घोषणा कर दी गई। चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को पदोन्नत करके नया CEC बनाया गया है। ज्ञानेश कुमार के अलावा एक निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति भी की गई है। इसके लिए पीएम मोदी की अध्यक्षता में बैठक हुई, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष विपक्ष के नेता राहुल गांधी शामिल हुए।
राहुल गांधी ने असहमति नोट में यह लिखा
राहुल गांधी ने बैठक में दिए गए अपने असहमति नोट में लिखा कि जून 1949 में एक स्वतंत्र चुनाव आयोग की स्थापना पर चर्चा के लिए संविधान सभा में बोलते हुए डॉ. बाबा साहब आंबेडकर ने भारत के लोकतंत्र और चुनाव आयोग के मामलों में कार्यपालिका के हस्तक्षेप के बारे में चेतावनी दी थी।
कार्यपालिका के हस्तक्षेप से मुक्त स्वतंत्र चुनाव आयोग का सबसे बुनियादी पहलू चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनने की प्रक्रिया है।
दो मार्च 2023 को एक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय की सांविधानिक पीठ ने आदेश दिया कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और मुख्य न्यायाधीश की एक समिति द्वारा की जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने हमारी चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को लेकर लाखों मतदाताओं के बीच व्यापक चिंता को उठाया। यह सार्वजनिक सर्वेक्षणों में भी दिखता है। यह भारत की चुनाव प्रक्रिया और संस्थानों में मतदाताओं के विश्वास में लगातार गिरावट दिखा रहा है।
दुर्भाग्य से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तुरंत बाद भारत सरकार ने अगस्त 2023 में एक कानून लागू किया। इसने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार कर दिया।
कानून ने प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और प्रधान मंत्री द्वारा नियुक्त एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को शामिल करने और मुख्य न्यायाधीश को समिति से हटाने के लिए CEC और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए समिति का पुनर्गठन किया।
यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की मूल भावना का घोर उल्लंघन है। इस आदेश को बाद में एक जनहित याचिकाकर्ता द्वारा चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 48 घंटे से भी कम समय बाद 19 फरवरी 2025 को मामले पर सुनवाई करने के अपने इरादे का संकेत दिया है।
कांग्रेस पार्टी का मानना है कि अगले CEC को चुनने की प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई तक टाल दिया जाए और इस बैठक को टाल दिया जाए।
इस समिति के लिए अगले CEC को चुनने की अपनी प्रक्रिया को जारी रखना संस्थानों के साथ-साथ हमारे देश के संस्थापक नेताओं के लिए भी अपमानजनक और असभ्य होगा, जब इस समिति की संरचना और प्रक्रिया को चुनौती दी जा रही है और जल्द ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई की जाएगी।