कोलकाता। पिछले साल 9 अगस्त को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक ट्रेनी डॉक्टर की लाश मिली। डॉक्टर की रेप के बाद हत्या कर दी गई थी। इस केस में कई आरोप और थ्योरी सामने आईं। कोलकाता पुलिस पर गंभीर आरोप लगे। पूरे देश में प्रदर्शन हुए।
मामला सीबीआई को जांच के लिए सौंपा गया। अब सियालदह सत्र न्यायालय के न्यायाधीश अनिरबन दास ने 172 पन्नों का फैसला दिया। उन्होंने संजय रॉय को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा दी। कोर्ट ने जो थ्योरी खारिज कीं, उनके कारण भी बताए।
पीड़िता के साथ गैंगरेप नहीं किया गया
न्यायाधीश दास ने गैंगरेप की संभावना को खारिज कर दिया। फैसले में लिखा है, ‘केवल एक व्यक्ति ने बलात्कार किया था, और सामूहिक बलात्कार का कोई सबूत नहीं मिला।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने इसका समर्थन किया, जिसमें पीड़िता के शरीर पर कोई फ्रैक्चर नहीं दिखाया गया, जो दर्शाता है कि हमला एक ही व्यक्ति ने किया था।
अदालत ने कहा कि जांच के दौरान जो गाढ़ा सफेद रंग का सूखा लिक्विड पाया गया था, वह क्या था, यह पता नहीं चल पाया। हालांकि यह साबित हुआ कि वह सीमन नहीं था। कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की विफलता भी मानी।
एक महिला पर्दे के पीछे छिपी थी
पीड़िता के माता-पिता ने शव परीक्षण के दौरान मिले डीएनए प्रोफाइल का हवाला देते हुए तर्क दिया था कि अपराध में एक अन्य महिला शामिल थी।
हालांकि, न्यायाधीश दास ने पोस्टमॉर्टम हाउस के खराब सुविधा और ठीक से स्टर्लाइजेशन की ओर इशारा किया, जिसके कारण यह सब हुआ। अन्य महिलाओं के शव फर्श पर पड़े थे।
जज ने अन्य व्यक्ति की संलिप्तता को खारिज करते हुए कहा, ‘निप्पल स्वाब में आरोपी के साथ-साथ पीड़िता का पूरा डीएनए प्रोफाइल मिला है। एक अन्य महिला के शामिल होने का प्रमाण बहुत ही नगण्य है।’
रॉय के लिए अकेले कार्य करना संभव
अदालत ने पाया कि मौत का कारण गला घोंटने से हुई। संजय रॉय यह काम अकेले ही कर सकता था। पोस्टमॉर्टम करने वाली टीम ने पुष्टि की कि मौत का कारण दम घुटना ही था।
सेमिनार हॉल में संघर्ष के कोई संकेत नहीं
सेमिनार हॉल में कुछ वस्तुएं जैसे कि पीड़िता का मोबाइल फोन, लैपटॉप और अभ्यास पुस्तिका अछूती थीं, न्यायाधीश दास ने संघर्ष का संकेत देने वाले अन्य सबूतों पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा, ‘पानी की बोतल मंच पर पड़ी मिली थी, और एक लाल कंबल को तकिए के रूप में इस्तेमाल किया गया था।’ ‘मेरे मन में यह मानने में कोई भ्रम नहीं है कि सेमिनार कक्ष, विशेष रूप से मंच, और अधिक सटीक रूप से मंच पर गद्दा… अपराध का दृश्य था।’
नर्सिंग स्टेशन पर किसी ने कुछ भी गलत नहीं देखा
बचाव पक्ष ने सवाल किया कि नर्सिंग स्टेशन ने संजय रॉय को चेस्ट विभाग में प्रवेश करते हुए क्यों नहीं देखा? न्यायाधीश दास ने इसे अटकलबाजी के रूप में खारिज कर दिया।
उन्होंने कहा, ‘9 अगस्त की सुबह, यह किसी भी ड्यूटी में शामिल होने का समय नहीं था। इस तरह के काल्पनिक तर्क पर विचार करना बहुत कठिन है।’
संजय रॉय को प्रताड़ित नहीं किया गया
अदालत को इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला कि रॉय को कबूलनामे के लिए प्रताड़ित किया गया था। न्यायाधीश दास ने अपने फैसले में लिखा, ‘जिरह के दौरान कहीं भी यह नहीं बताया गया कि आरोपी को पुलिस हिरासत में पीटा गया था,’ उन्होंने कहा कि जांच प्रक्रिया के दौरान ऐसा कोई आरोप पेश नहीं किया गया था।