ढाका। बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर छात्रों द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन और सेना के दबाव के बीच सोमवार को देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दिया और अपना देश छोड़ दिया।
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का इस तरह से दबाव में देश को छोड़ना दक्षिण एशियाई देश में पहली बार नहीं हुआ है। आधी सदी पहले भी आजादी मिलने के बाद देश के कई नेताओं को देश छोड़ कर भागने पर मजबूर होना पड़ा है।
बांग्लादेश का अशांत इतिहास
1975: हत्याएं और तख्तापलट की भरमार
पूर्व में पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश 1971 में भारत के साथ एक क्रूर युद्ध के बाद एक नए राष्ट्र के रूप में उभरा।
स्वतंत्रता के नायक शेख मुजीबुर रहमान देश के पहले प्रधानमंत्री बने, फिर उन्होंने एक-दलीय प्रणाली शुरू की और जनवरी 1975 में राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला।
एक साल के भीतर ही 15 अगस्त को सैनिकों के एक समूह ने उनकी पत्नी और तीन बेटों के साथ उनकी हत्या कर दी। इसके बाद सेना के एक हिस्से के समर्थन से खोंडाकर मुस्ताक अहमद ने सत्ता संभाली।
अहमद का कार्यकाल अल्पकालिक था। 3 नवंबर को सेना के चीफ ऑफ स्टाफ खालिद मुशर्रफ द्वारा उकसाए गए तख्तापलट में उन्हें उखाड़ फेंका गया, जिनकी बदले में प्रतिद्वंद्वी विद्रोहियों द्वारा हत्या कर दी गई। इसके बाद जनरल जियाउर रहमान ने 7 नवंबर को सत्ता संभाली।
1981-83: खूनी विद्रोह
सत्ता में छह साल से भी कम समय के बाद, 30 मई, 1981 को विद्रोह के प्रयास के दौरान रहमान की हत्या कर दी गई। उनके उपाध्यक्ष अब्दुस सत्तार ने जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद के समर्थन से अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला।
लेकिन इरशाद ने एक साल के भीतर ही सत्तार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और 24 मार्च 1982 को रक्तहीन तख्तापलट के जरिए उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया। सत्ता संभालने के तुरंत बाद उन्होंने मार्शल लॉ लागू कर दिया और अहसानुद्दीन चौधरी को राष्ट्रपति बना दिया।
फिर 11 दिसंबर 1983 को इरशाद ने खुद को राष्ट्राध्यक्ष घोषित कर दिया। चौधरी, जिनका पद मानद (honorary) था, जनरल के प्रति वफ़ादार एक राजनीतिक दल का नेतृत्व करने लगे।
1990: विरोध प्रदर्शनों के बाद इरशाद ने दिया था इस्तीफा
बांग्लादेश में लोकतंत्र की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शनों की लहर के बाद, इरशाद ने 6 दिसंबर, 1990 को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्हें 12 दिसंबर को गिरफ्तार कर लिया गया और भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल भेज दिया गया।
न्याय मंत्री शहाबुद्दीन अहमद ने अगले साल चुनाव होने तक अंतरिम नेता के रूप में कार्यभार संभाला। इरशाद को अंततः जनवरी 1997 में रिहा कर दिया गया।
1991: पहला स्वतंत्र चुनाव
देश में पहला स्वतंत्र चुनाव 1991 की शुरुआत में हुआ, जिसमें बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) स्पष्ट विजेता रही। जनरल जियाउर रहमान की विधवा खालिदा जिया बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।
1996 में हसीना की अवामी लीग ने बीएनपी को हराकर उनकी जगह उनकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना को प्रधानमंत्री बनाया। वह देश के संस्थापक पिता मुजीबुर रहमान की बेटी हैं।
बीएनपी 2001 में सत्ता में लौटी और जिया एक बार फिर प्रधानमंत्री बनीं तथा अक्टूबर 2006 में अपना कार्यकाल पूरा किया।
2007: भ्रष्टाचार विरोधी अभियान
2007 में, सेना के समर्थन से, राष्ट्रपति इयाजुद्दीन अहमद ने सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद आपातकाल की घोषणा की।
इसके बाद सैन्य नेतृत्व वाली सरकार ने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान शुरू किया और हसीना तथा जिया दोनों को भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में डाल दिया, लेकिन 2008 में उनकी रिहाई हो गई।
दिसंबर 2008 में चुनावों में अपनी पार्टी की जीत के बाद हसीना एक बार फिर प्रधानमंत्री बनीं।