मुंबई। बीजेपी की तोड़फोड़ वाली राजनीति महाराष्ट्र के लोगों को पसंद नहीं आई। उनकी हरकत से उद्धव ठाकरे और शरद पवार के प्रति सहानुभूति की जो लहर उठी, वह NDA को बहा ले गई। यहां तक कि अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार भी बारामती सीट से चुनाव हार गईं।
BJP के दिग्गज नेता और शिंदे सेना के कैबिनेट मंत्री सुधीर मुनगंटीवार को भी हार का स्वाद चखना पड़ा। अशोक चव्हाण के गढ़ नांदेड में उनका उम्मीदवार भी हार गया। मोदी सरकार के कई मंत्री अपनी सीट नहीं निकाल पाए।
राजनीतिक उठा-पटक का गुस्सा
साल 2019 में BJP और शिवसेना ने लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा था। तब राज्य की 48 सीटों में से उनके खाते में 41 सीटें गई थीं। कांग्रेस-NCP गठबंधन को 5 सीटें ही मिली थीं। उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में भी BJP और शिवसेना साथ उतरीं लेकिन, सरकार बनाने की बारी आई तो दोनों दल अलग हो गए।
उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने, लेकिन जल्द ही उनकी पार्टी टूट गई और सरकार गिर गई। फिर शिंदे सरकार बनी और कुछ दिन बाद ही शरद पवार की पार्टी NCP भी टूट गई। शरद पवार से अलग हुए अजित पवार, शिंदे सरकार में आ गए। राज्य में हुई इस सारी उठा-पटक के लिए वोटर्स ने BJP को दोषी माना।
भारी पड़ा आरक्षण का मुद्दा
राज्य सरकार ने जिस तरह से मराठा आरक्षण मसले को हैंडल किया, वह मराठों को रास नहीं आया। इसका असर मराठवाड़ा के मतदाताओं पर तो पड़ा ही, साथ ही OBC समाज को अपना आरक्षण खतरे में नजर आने लगा। इससे मराठा और ओबीसी BJP गठबंधन के खिलाफ खड़े हो गए।
अबकी बार 400 पार का नारा भी BJP को ले डूबा। विपक्ष दलित मतदाताओं को यह समझाने में पूरी तरह सफल रहा कि BJP 400 सीटें जीतकर संविधान को बदल देना चाहती है। दलित समाज के पार्टी से दूर जाने का सबसे ज्यादा असर पड़ा विदर्भ पर। कांग्रेस ने वहां सेंधमारी कर दी।
आरोप लगाया, फिर उम्मीदवार बनाया
BJP ने जिन लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, बाद में वही पार्टी के लिए वोट मांगते नजर आए। मसलन, दक्षिण मुंबई में शिंदे सेना की उम्मीदवार यामिनी जाधव के पति यशवंत जाधव पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे। वहीं, उत्तर पश्चिम सीट पर रविंद्र वायकर को टिकट दिया।
झेलनी पड़ी किसानों की नाराजगी
लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगा दी। किसानों को यह रास नहीं आया। इसके अलावा किसानों से जुड़े कई और मुद्दे भी रहे। एक तरफ सूखे की मार और दूसरी ओर बेमौसम बारिश से फसलों को नुकसान।
दोनों ही स्थिति में शिंदे सरकार किसानों को मदद नहीं कर पाई। फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल सका। MSP के लिए किसान लड़ाई लड़ते रहे। इसकी कीमत भी BJP और सहयोगी दलों को चुकानी पड़ी।
मोदी पर बहुत ज्यादा आत्मनिर्भरता
पीएम नरेंद्र मोदी पर बहुत ज्यादा निर्भर रहने से BJP का कैडर चुनाव में उतना सक्रिय नहीं रहा, जितना उसे होना चाहिए था। हर बात के लिए मोदी-मोदी रटना मतदाताओं को अच्छा नहीं लगा।
मुंबई की उत्तर पूर्व सीट पर मोदी ने रोड शो किया, मुंबई में बड़ी सभा की, लेकिन वह मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर सके। विपक्ष ने मतदाताओं के सामने बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों को रखा और अपनी बात समझाने में सफल रहा।