नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को रोहिंग्या बच्चों के शिक्षा के अधिकार पर बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि रोहिंग्या प्रवासियों के बच्चों के साथ शिक्षा में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि बच्चों की शिक्षा के मामले में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं बरता जाना चाहिए।
रोहिंग्या बच्चों को सरकारी फायदे देने की मांग
यह मामला एक NGO ‘रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान उठा। याचिका में मांग की गई है कि रोहिंग्या बच्चों को स्कूलों में दाखिला मिलने में काफी दिक्कतें आ रही हैं। रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को आधार कार्ड और नागरिकता की अनिवार्यता के बिना स्कूलों में दाखिला और सरकारी लाभ दिए जाएं।
सुप्रीम कोर्ट हरसंभव मदद करने को तैयार
याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि रोहिंग्या शरणार्थी बेहद मुश्किल हालात में जी रहे हैं। उनके बच्चों को स्कूलों में दाखिला नहीं मिल पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने राहत देने से पहले रोहिंग्या परिवारों के निवास स्थान का प्रमाण मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि नाबालिग बच्चों की निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए। कोर्ट ने बच्चों के माता-पिता और उनके पते का विवरण मांगा है।
पीठ ने कहा, ‘हमें किसी भी बच्चे की पहचान उजागर नहीं करनी चाहिए। हमें रजिस्ट्रेशन नंबर वगैरह दिखाएं जिससे हम कुछ मदद कर सकें। हम देखेंगे कि क्या किया जा सकता है।’ याचिकाकर्ता संस्था के वकील ने बताया कि रोहिंग्याओं के पास UNHCR से जारी कार्ड हैं जो उनकी शरणार्थी स्थिति को दर्शाते हैं।
क्या है UNHCR
UNHCR यानी यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रेफ्यूजीज़, शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र का एक संगठन है। यह संगठन दुनियाभर के शरणार्थियों की मदद करता है। कोर्ट ने संकेत दिया कि एक बार रोहिंग्या शरणार्थियों के निवास की पुष्टि हो जाने पर वो राहत के उपायों पर विचार करेगा।