‘वसुधै कुटुम्बकम की बात करते हैं, परिवार के साथ नहीं रह सकते’; सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा ऐसा?

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नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों ऐसी खबरें सामने आई हैं, जिसने परिवार और शादी के रिश्तों को शर्मसार कर दिया है। मेरठ में पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की जान ले ली

तो बेंगलुरु में महाराष्ट्र के एक सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल द्वारा अपनी पत्नी की उसके घर पर चाकू घोंपकर हत्या कर दी। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने देश में समाप्त हो रही परिवार की अवधारणा पर चिंता जताई है।

एक व्यक्ति-एक-परिवार की व्यवस्था बन रही

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारत में वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत में लोग विश्वास करते हैं, लेकिन करीबी रिश्तेदारों के साथ एक साथ रह नहीं सकते।

न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ ने कहा कि परिवार की अवधारणा समाप्त हो रही है और एक व्यक्ति-एक-परिवार की व्यवस्था बन रही है।

बेटा मुझे मानसिक और शारीरिक यातना देने देता है: याचिकाकर्ता

कोर्ट में एक महिला द्वारा याचिका दायर की गई थी, जिसमें उसने अपने बड़े बेटे के घर से बेदखल करने का अनुरोध किया था। कोर्ट को इस बात की जानकारी मिली की पत्नी समतोला देवी के तीन बेटे और दो बेटियों सहित पांच बच्चे हैं। कल्लू मल का बाद में निधन हो गया है।

माता-पिता के अपने बेटों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं थे और अगस्त में कल्लू मल ने स्थानीय एसडीएम को शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने अपने बड़े बेटे पर मानसिक और शारीरिक यातना देने का आरोप लगाया।

माता-पिता को 4,000 रुपये प्रति महीना देना होगा: कुटुंब अदालत

साल 2017 में दंपती ने अपने बेटों के खिलाफ भरण-पोषण के लिए कार्यवाही शुरू की, जो सुल्तानपुर की एक कुटुंब अदालत में एक आपराधिक मामले के रूप में रजिस्टर की गई। कुटुंब अदालत ने माता-पिता को 4,000 रुपये प्रति महीना देना का आदेश दिया।

दोनों बेटों को समान रूप से मां-बाप को देना होगा। पिता ने आरोप लगाया कि उनका सबसे बड़ा बेटा उनकी दैनिक एवं चिकित्सा आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखता था।

हालांकि, अदालत ने कहा कि बेटे को घर के हिस्से से बेदखल करने का आदेश देने जैसे कठोर कदम की कोई आवश्यकता नहीं थी, बल्कि वरिष्ठ नागरिक कानून के तहत भरण-पोषण का आदेश दिया जा सकता था।

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