एफआईआर रद्द करने की हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्ति का परीक्षण अब नौ जजों की वृहद पीठ करेगी। यह देखा जाएगा कि हाईकोर्ट में एफआईआर को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा-528 के तहत चुनौती दी जा सकती है या फिर भारतीय संविधान के अनुच्छेद-226 के अंतर्गत दाखिल होने वाली याचिका ही पोषणीय है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने इस कानूनी उलझन को नौ जजों की वृहद पीठ को सौंपने का फैसला सुनाया है। साथ ही कोर्ट ने महानिबंधक को वृहद पीठ के गठन के लिए मामला तीन दिन में मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश करने को कहा है।
याची शशांक गुप्ता उर्फ गुड्डू और अन्य के खिलाफ चित्रकूट के कर्वी थाने में दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज है। मामले में याचियों ने बीएनएसएस की धारा-528 के तहत एफआईआर रद्द करने की मांग के साथ हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
दावा है कि मुकदमा दुर्भावनापूर्ण तरीके से उन्हें सताने के लिए दर्ज करवाया गया है। याची का तर्क है कि हाईकोर्ट अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर झूठी व दुर्भावनापूर्ण एफआईआर को रद्द कर सकता है।