वाशिंगटन/नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रेसिप्रोकल टैरिफ का एलान किया है। इसमें अमेरिका सभी देशों पर उतना ही टैरिफ लगाएगा, जितना वे अमेरिकी उत्पादों पर लगाते हैं।
इसका मतलब है कि भारत अगर अमेरिका के कृषि उत्पादों पर 10 फीसदी टैरिफ लगाता है। तो अमेरिका भी 10 फीसदी टैरिफ लगाएगा। अभीन तक अमेरिका के टैरिफ रेट आमतौर पर दूसरे देशों के मुकाबले काफी कर हैं।
हालांकि, ट्रंप की टैरिफ बढ़ाने की योजना का सबसे अधिक नुकसान अमेरिकी उपभोक्ताओं को ही होगा। यह दावा दिग्गज ग्लोबल बैंक स्टैंडर्ड चार्टर्ड की एक रिपोर्ट में किया गया है।
इसके मुताबिक, आयातक बढ़े हुए टैरिफ लागत को अमेरिकी उपभोक्ताओं पर डाल देंगे। इससे निकट भविष्य में मुद्रास्फीति में वृद्धि होगी। साथ ही, मध्यम अवधि में आर्थिक वृद्धि को भी नुकसान होगा।
क्या कहती है स्टैंडर्ड चार्टर्ड की रिपोर्ट?
स्टैंडर्ड चार्टर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘अमेरिका की विनिर्माण क्षमता और रोजगार बाजार पहले से ही तंग हैं; इसलिए अधिकांश टैरिफ बढ़ोतरी का बोझ उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।’
हालांकि, ट्रंप की टैरिफ से अमेरिका में महंगाई कितनी बढ़ेगी, इसका आकलन टैरिफ रेट और अमेरिकी डॉलर की अन्य मुद्राओं के मुकाबले समायोजन पर निर्भर करेगा।
साथ ही, इस फैक्टर पर भी नजर रखने की जरूरत होगी कि ट्रंप की रेसिप्रोकल टैरिफ से ग्लोबल ट्रेड की सप्लाई चेन पर क्या असर पड़ता है और दूसरे देश इस पर कैसी प्रतक्रिया देते हैं।
अमेरिकी जीडीपी को भारी नुकसान?
स्टैंडर्ड चार्टर्ड का कहना है कि नए टैरिफ अमेरिकी व्यक्तिगत उपभोग व्यय (PCE) मुद्रास्फीति को 0.7 फीसदी तक बढ़ा सकते हैं। इससे अमेरिकी GDP को 1.2 फीसदी तक का नुकसान भी हो सकता है।
अमेरिका को यह नुकसान उस स्थिति में होगा, जब सभी टैरिफ का पूरा बोझ उपभोक्ताओं पर डाला जाएगा और अमेरिकी व्यापार भागीदार उसी स्तर पर जवाबी एक्शन भी लेंगे। PCE मुद्रास्फीति उस दर को मापती है, जिस पर अमेरिका में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें समय के साथ बदलती हैं।
इस आर्थिक प्रभाव को सरल भाषा में समझें तो, जिन आयातकों को विदेशी वस्तुओं पर अधिक टैरिफ देना होगा, वे अतिरिक्त लागत को उपभोक्ताओं से वसूलेंगे।
इससे आयातित वस्तुओं की कीमतें सीधे तौर पर बढ़ जाएगी। इसका असर निकट भविष्य में महंगाई के तौर पर दिखेगा और लोग की खरीदने की क्षमता घट जाएगी। यह अमेरिका की मध्यम अवधि की आर्थिक वृद्धि को नुकसान पहुंचा सकती है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अगर ट्रंप रेसिप्रोकल टैरिफ को लागू कर देते हैं, तो अमेरिका की औसत टैरिफ दर 10 फीसदी से अधिक हो सकती है। यह 1940 के दशक के बाद यानी करीब 85 साल में सबसे अधिक टैरिफ दर होगी। अभी अमेरिका विदेशी वस्तुओं पर औसतन 2.3 फीसदी टैरिफ लगाता है।
अमेरिकी टैरिफ से किसे होगा ज्यादा नुकसान?
ट्रंप के नए प्रस्तावित टैरिफ बेशक अमेरिकी प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाएंगे, लेकिन इसका खामियाजा उसके व्यापारिक भागीदारों को उठाना पड़ेगा।
स्टैंडर्ड चार्टर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, मैक्सिको, कनाडा और यूरोपीय संघ (EU) को नए टैरिफ का सबसे अधिक प्रभाव झेलना पड़ेगा, क्योंकि महामारी के बाद से अमेरिका के साथ उनका ट्रेड सरप्लस काफी बढ़ गया है।
चीन पर भी इसका अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था अब वैश्विक निर्यात पर अधिक निर्भर हो गई है। अमेरिका की चीन से अलग ट्रेड वॉर भी चल रही है।
ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद चीन के उत्पादों पर 10 फीसदी टैरिफ का एलान किया था। इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाई थी।
भारत पर ट्रंप के टैरिफ का क्या असर होगा?
SBI ने पिछले दिनों अमेरिका के रेसिप्रोकल टैरिफ के भारत पर होने वाले असर पर व्यापक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें कहा गया था कि अगर अमेरिका 15-20 फीसदी की उच्च टैरिफ दरें लागू भी करता है,
तो भी भारतीय निर्यात पर इसका कुल प्रभाव सिर्फ 3-3.5 फीसदी तक सीमित रहेगा। इसे बढ़े हुए निर्यात लक्ष्यों (Higher Export Goals) के जरिए आसानी से संतुलित किया जा सकता है।
SBI की रिपोर्ट में टैरिफ के प्रभाव को कम करने के तरीकों की भी बात की गई थी। इसमें बताया गया है कि भारत निर्यात विविधीकरण (Export Diversification), मूल्य संवर्धन (Value Addition) और नए व्यापार मार्ग (New Trade Routes) खोजकर ट्रंप के टैरिफ वॉर के असर को कम कर सकता है।