बरेली। बहन की गला काटकर हत्या करने वाले पति व सास-ससुर को फांसी की सजा सुनाने के कोर्ट के फैसले से भाई मुसब्बर की आंखें भर आईं। उन्होंने कहा कि मेरी बहन को आज जाकर न्याय मिला, जिस दिन तीनों दोषियों को फांसी के तख्ते पर लटके हुए देखूंगा, उस दिन और खुशी होगी।
मुसब्बर ने कहा कि तीनों ने बड़ी बेरहमी से मेरी बहन का गला काट दिया था। उस दर्द को जब महसूस करता हूं तो कलेजा फट जाता है। कोर्ट ने जो फैसला सुनाया उससे पूरी तरह से संतुष्ट हूं।
भाई ने किया तीनों बहनों का निकाह
बता दें कि मुसब्बर गांव में ही रहकर पल्लेदारी करते हैं। पिता की मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने से तीनों बहनों का निकाह कर उन्हें डोली में बैठाने का जिम्मा उन्हीं ने निभाया।
सबसे छोटी बहन का पति दोषी मकसद अली चारपाई बेचने का काम करता था, जब निकाह हुआ तो जितनी हैसियत थी उससे कहीं ज्यादा दहेज दिया।
बुलेट मांग रहे थे ससुराल वाले
इसके बाद भी मकसद अली और उसके स्वजन बुलेट की मांग कर रहे थे। मैं उस मांग को पूरा नहीं कर सका तो दोषियों ने मेरी बहन की निर्मम हत्या कर दी। कोर्ट ने जब दोषियों को फांसी की सजा सुनाई तो मुसब्बर ने राहत की सांस ली और न्याय पालिका के प्रति भरोसा जताया।
दहेज सिर्फ महिला नहीं बल्कि मायके वालों के प्रति भी अपराध
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि दहेज की मांग सिर्फ महिला के प्रति अपराध ही नहीं है। बल्कि उस महिला के मायके वालों के प्रति भी अपराध है। कोर्ट ने महिला और उनके माता-पिता की भावनाओं को एक कविता के माध्यम से समझाने का प्रयास किया।
कहा कि जेब में रखा पेन जब कोई मांग ले तो हम देने में हिचकिचाते हैं, ये बेटी वाले भी क्या जिगर रखते हैं, जो कलेजे का टुकड़ा सौंप देते हैं…।
कोर्ट की जिम्मेदारी- भावी पीढ़ी को मार्गदर्शन स्थापित करें
कोर्ट ने कहा है कि न्यायालय की जिम्मेदारी है कि वह भावी पीढ़ी के लिए एक अच्छे मूल्य और मार्गदर्शन स्थापित करें। उन्होंने स्वामी विवेकानंद की बात का जिक्र करते हुए कहा है कि किसी राष्ट्र की प्रगति का सबसे अच्छा मापदंड उस राष्ट्र का महिलाओं के प्रति व्यवहार है।
महिलाओं के विरुद्ध अपराध न केवल महिलाओं के आत्मसम्मान और गरिमा को प्रभावित करता है, बल्कि सामाजिक विकास की गति को भी बाधित करता है।