पटना। बिहार के नवनियुक्त राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान पटना पहुंचते ही फार्म में आ गए हैं। पुराने दोस्तों से मिल रहे हैं। सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के साथ बेहतर तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहे हैं। केरल में राज्य सरकार से उनकी जैसी तनातनी रही, बिहार में उनके वैसे रुख की स्थिति नहीं है।
इसलिए कि बिहार में NDA की सरकार है। NDA की ही केंद्र सरकार ने उन्हें नियुक्त भी किया है। इसलिए यहां वैसे टकराव की आशंका नहीं है। प्रतिपक्ष को भी वे समान रूप से साध रहे हैं।
अश्विनी चौबे, नेयाज अहमद और राबड़ी से मिले
पटना पहुंचने पर राज्यपाल भाजपा के वरिष्ठ नेता अश्विनी चौबे के घर गए और भोजन किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नववर्ष पर राज्यपाल से मुलाकात की।
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव राज्यपाल से मिले तो वे भी राबड़ी देवी को जन्मदिन का मुबारकबाद देने बेझिझक राबड़ी देवी के आवास पहुंच गए। वहां लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी से उन्होंने मुलाकात की।
और तो और, राज्यपाल इससे पहले फुलवारी शरीफ में अपने दशकों पुराने सहपाठी नेयाज अहमद से मिलने उनके घर पहुंच गए। बकौल नेयाज अहमद यह कृष्ण-सुदामा के मिलन जैसा रहा। यह आरिफ मोहम्मद खान का उदारवादी चेहरा है, जिसके लिए उनकी ख्याति भी रही है।
राज्यपाल की सहजता के मायने क्या?
राज्यपाल खान के बिहार में कामकाज के अंदाज का यह ट्रेलर है। बिहार में राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर की जगह आरिफ मोहम्मद खान की नियुक्ति क्यों हुई, यह गुत्थी अब भी अनसुलझी है।
इतना तो तय माना जा रहा है कि जरूरत पड़ने पर वह भाजपा या NDA के हित में ही काम करेंगे, पर किस रूप में वे कारगर होंगे, उनके शुरुआती अंदाज से इस नतीजे पर पहुंचने के लिए बिहार में अब भी माथापच्ची जारी है। अनुमान लगाने में सियासत की समझ रखने वाले भी असमर्थ दिख रहे हैं।
कहीं राष्ट्रपति शासन की तैयारी तो नहीं!
वैसे यह हाइपोथेटिकल सवाल है। इसलिए इसका जवाब भी हाइपोथेटिकल ही होगा। नीतीश कुमार का अभी भाजपा के प्रति जैसा रुख दिखाई दे रहा है, उससे यही संकेत मिलता है कि एनडीए सरकार कंफर्ट स्थिति में नहीं है।
नीतीश कुमार जिस तरह अचानक चौंकाने वाले फैसले के लिए जाने जाते हैं, उससे खतरा और अधिक दिखता है। भाजपा से वर्षों पुराना रिश्ता झटके में उन्होंने 2013 में तोड़ लिया था। 2014 के संसदीय चुनाव में अकेले वे उतर गए थे।
2015 में उन्होंने डूब चुके आरजेडी को साथ लेकर उबार दिया। उसके बाद भी 2017, 2022 और 2024 में उन्होंने सीएम की कुर्सी की सलामती के लिए कभी आरजेडी तो कभी भाजपा से हाथ मिलाया।
अगर नीतीश ने फिर लिया चौंकाने वाला फैसला तो…
ऐसे में नीतीश कुमार फिर कोई चौंकाने वाला फैसला ले लें तो आश्चर्य नहीं। ऐसा हुआ तो यहां राज्यपाल की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। राजनीतिक अस्थिरता का हवाला देकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की स्थिति बन सकती है।
भाजपा बचे आठ-नौ महीनों के लिए सरकार बनाने की माथापच्ची के बजाय राष्ट्रपति शासन ही पसंद करेगी। तब राज्यपाल का यह उदारवादी चेहरा भाजपा के काम आएगा, जिसका परिचय उन्होंने आते ही बिना भेदभाव लोगों से मिल कर दे दिया है।