लखनऊ। उप्र सरकार ने अपने स्तर से पुलिस महानिदेशक (DGP) के चयन का रास्ता साफ कर लिया है। DGP के चयन के लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में छह सदस्यीय समिति का गठन किया जाएगा।
समिति में मुख्य सचिव, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) से एक सदस्य, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या उनकी तरफ से नामित अधिकारी के अलावा अपर मुख्य सचिव या प्रमुख सचिव गृह व पूर्व DGP शामिल होंगे।
कैबिनेट की बैठक में प्रस्ताव को मंजूरी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में सोमवार को हुई कैबिनेट की बैठक में DGP की नियुक्ति के लिए पुलिस महानिदेशक, उप्र (उप्र के पुलिस बल प्रमुख) चयन एवं नियुक्ति नियमावली 2024 संबंधी अहम प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई।
प्रदेश में करीब तीन वर्षों से स्थायी DGP की नियुक्ति नहीं की जा सकी है। नई नियमावली बनने के बाद अब सरकार को स्थायी तौर पर DGP की नियुक्ति के लिए UPSC से मंजूरी की जरूरत नहीं होगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने DGP की नियुक्ति को लेकर वर्ष 2006 में एक याचिका की सुनवाई के दौरान पुलिस व्यवस्था को सभी दबाव से मुक्त करने के लिए राज्य सरकार से कानूनन नई व्यवस्था बनाने की अपेक्षा की थी। उसके बाद पंजाब, तेलंगाना व आंध्र प्रदेश सरकार ने DGP की नियुक्ति के संबंध में नियमावली बना रखी है।
सेवा रिकॉर्ड व अनुभव को बनाया जाएगा आधार
डीजीपी की नियुक्ति के लिए नई नियमावली बनाने वाला उत्तर प्रदेश चौथा राज्य बन गया है। नियमावली में यह स्पष्ट किया गया है कि अब DGP की नियुक्ति संबंधित IPS अधिकारी के बेहतर सेवा रिकॉर्ड व अनुभव के आधार पर की जाएगी। उन्हीं अधिकारियों को DGP की नियुक्ति के लिए तवज्जो दी जाएगी, जिनका कम से कम छह माह का कार्यकाल शेष बचा हो।
यह प्रावधान भी किया गया है कि DGP की नियुक्ति कम से कम दो वर्षों के लिए की जाएगी, लेकिन डीजीपी के कार्यों से असंतुष्ट होने पर राज्य सरकार उन्हें हटा भी सकती है। वहीं, वेतन मैट्रिक्स के स्तर 16 वाले अधिकारियों में से ही डीजीपी का चयन किया जाएगा।
DGP प्रशांत कुमार के नाम पर विचार संभव
मौजूदा DGP प्रशांत कुमार प्रदेश के चौथे कार्यवाहक DGP हैं। वह अगले वर्ष 31 मई को सेवानिवृत्त होंगे। चूंकि प्रशांत कुमार का कार्यकाल अभी छह माह से ज्यादा है, इसलिए नई नियमावली के लागू होने पर समिति द्वारा DGP के चयन में इनके नाम पर भी विचार करना संभव होगा।
अभी DGP की नियुक्ति की यह व्यवस्था
DGP की नियुक्ति के लिए पहले की व्यवस्था के अनुसार सरकार पुलिस सेवा में 30 वर्ष पूरे कर चुके उन अधिकारियों के नाम UPSC को भेजती थी, जिनका छह माह का कार्यकाल शेष हो। UPSC राज्य सरकार को तीन अधिकारियों के नामों का पैनल भेजता था, जिसमें से सरकार किसी एक को DGP बनाती थी।