संभल। हिंसा की आग में झुलसे संभल में शनिवार तड़के मस्जिदों के लाउडस्पीकर का शोर जांचने पहुंची टीम का चौंकाने वाले सच से सामना हुआ। मुस्लिम बहुल खग्गू सराय मुहल्ले में पांच मस्जिदों और इसके आसपास ढाई सौ घरों में बरसों से कटिया कनेक्शन से बिजली चोरी की जा रही थी।
टीम को यहीं 46 साल से बंद एक मंदिर मिला जिसे एक मकान से सटाकर और दीवार खड़ी कर कब्जा लिया गया था। मंदिर सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क के आवास से महज दो सौ और सर्वे को लेकर चर्चा में आई शाही मस्जिद से पांच सौ मीटर की दूरी पर स्थित है।
मंदिर के दरवाजों पर पड़े ताले खुलवाकर देखा गया तो उसमें हनुमान जी की एक मूर्ति और शिवलिंग मिला। लंबे अरसे से बंद रहने की वजह से उनपर धूल जमी थी। मंदिर के बराबर कुएं को भी पाट दिया गया था।
उसकी खोदाई कराई जा रही है। मंदिर मिलने से हिंदू समाज उत्साहित है। पता चला कि 1978 के सांप्रदायिक दंगे के बाद मुहल्ले से हिंदू पलायन कर गए थे। मंदिर पर मुस्लिमों ने कब्जा कर मकान में मिला लिया था।
DM ने बताया, पांच सौ साल पुराना मंदिर
जिलाधिकारी ने बताया कि मंदिर चार से पांच सौ साल पुराना है। इस संबंध में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भी पत्र लिखा जा रहा है। मंदिर में CCTV भी लगाए जा रहे हैं। ताले खोले जाने से किसी भी वर्ग को कोई परेशानी नहीं है।
मंदिर की देखरेख का जिम्मा वहीं के रस्तोगी परिवार को दिया गया है। सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी प्रशासन की रहेगी। आसपास का अतिक्रमण हटाया जा रहा है। यहां मौजूद कुएं का सुंदरीकरण कराकर मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया जाएगा।
शहर की मस्जिदों में तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजाए जा रहे थे। शुक्रवार को अनार वाली मस्जिद के इमाम का शांतिभंग में चालान भी किया गया था। साथ ही मुस्लिम बाहुल्य मुहल्लों में बिजली चोरी भी बड़े पैमाने पर की जा रही है।
DM और SP कर रहे थे चेकिंग
डीएम राजेंद्र पैंसिया व एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई अधिकारियों और पुलिस फोर्स के साथ चेकिंग कर रहे थे। खग्गू सराय में मंदिर जैसा गुंबद देख अफसर रुके। वर्षों पुराना लटका ताला तुड़वाकर देखा, तो भौचक्क रह गए। मंदिर में मूर्तियां थी।
ASP श्रीश चंद्र व सीओ अनुज चौधरी ने जूते उतारकर हनुमान जी की मूर्ति और शिवलिंग को साफ किया। वहां पूर्व में चढ़ाए गए कुछ सिक्के भी मिले हैं। करीब 50 मीटर क्षेत्र के इस मंदिर में एक कक्ष में मूर्तियां हैं। एक कमरा खाली है। इसके दो दरवाजे हैं।
अवैध कब्जा हटाने के लिए दिए निर्देश
डीएम ने नगरपालिका के अधिकारियों को मंदिर पर हुए अवैध कब्जे को हटाने और कुएं को खुदवाने का आदेश दिया। डीएम ने मंदिर को पुराने स्वरूप में लौटाने की बात कही है। उनका कहना है कि इसका पुनर्निर्माण कराने के साथ सुंदरीकरण भी कराएंगे।
मंदिर के मिलने की खबर पर वहां काफी संख्या में हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता और अन्य लोग एकत्र हो गए। उन्होंने मंदिर की सफाई कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी है। कई स्थानों पर मिष्ठान वितरण भी किया गया है।
1978 के सांप्रदायिक दंगे में मंदिर पर किया कब्जा
नगर हिदू सभा के संरक्षक विष्णु सरन रस्तोगी का कहना है कि 1978 के सांप्रदायिक दंगे के दौरान खग्गू सराय में कई हिंदू घरों में आग लगा दी गई थी। डर के चलते हिंदू परिवार यहां से पलायन कर दूसरे स्थान पर जाकर बस गए।
मंदिर के बराबर में ही एक कुआं है जिसको अकील अहमद ने पाट दिया। मंदिर मुस्लिम आबादी में होने के चलते उसपर कब्जा कर मकान में मिला लिया गया। विरोध के कारण हिंदू पूजा करने भी नहीं आ सके।
चार से पांच सौ साल पुराना मंदिर
लंबे अरसे से बंद रहने की वजह से मंदिर के शिखर से लेकर गर्भ गृह में दीवारें धूल से अटी पड़ी हैं। दीवारों से सीमेंट और पेंट की पपड़ी कई स्थानों से हट चुकी है। लोगों का कहना है मंदिर चार से पांच सौ साल पुराना है।
मुहल्ले से पलायन करने वाले कारोबारी प्रदीप कुमार का कहना है कि उनके पूर्वज भी मंदिर में पूजा करते थे। मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है। द्वार के सामने की दीवार पर हनुमान जी की मूर्ति है। मंदिर के अंदर की दीवारों पर छह दीपक रखे जाने के स्थान बने हैं।
मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है, लेकिन 30 साल पहले चार फीट दूरी पर दीवार खड़ी कर इसे बंद कर दिया गया। निकासी द्वार उत्तर और दक्षिण की ओर है। दोनों पर ताला लगा मिला। दक्षिणी द्वार के सामने कुआं था, इसे मिट्टी से पाट दिया गया।
पश्चिम की ओर बने मकान के मालिक ने छजेली निकालकर शिखर की ओर अवैध कब्जा कर लिया है और उसी के द्वारा कुएं को पाट दिया गया। मंदिर आने-जाने के लिए दक्षिण और उत्तर दोनों ओर से संकरी गली है। यहां से 200-300 मीटर दूर ही हिंदू आबादी है।
खग्गू सराय में मंदिर के आसपास रहने वाले करीब 20 से 25 हिंदू परिवार 1978 के बाद पलायन कर गए। मंदिर के पास मोहनलाल का घर है, लेकिन वह भी वर्षों पहले घर छोड़कर दूसरे मुहल्ले में चले गए। मुहल्ले वालों ने बताया कि वर्षों पहले मंदिर की जिम्मेदारी इसी परिवार पर थी। हिंदुओं के पलायन के बाद मंदिर में पूजा बंद हो गई।